लेखनी प्रतियोगिता -15-Dec-2021
दैनिक कहानी प्रतियोगिता
लेखनी।
विषय: उम्र का आखिरी पड़ाव।
शीर्षक: अन्तिम निर्णय।
60 वर्षीय सुभाष जी ने अपने दोनों बच्चों रितु व साहिल दोनों को अपने पास आने का संदेश भिजवाया,,
पापा का संदेश पाकर दोनों बच्चे तुरन्त,, बिना देरी किए निकल पड़े,, वो लगातार पापा से फोन contact करने की कोशिश कर रहे थे,, जैसे ही रितु का फोन लगा और पापा ने रिसीव किया तो,,पापा के हैलो बोलते ही रितु बड़बड़ाती हुई पूछने लगी,,
क्या? हुआ , पापा आप ठीक तो हैं,, साहिल और मैं दोनों निकल लिये हैं और सुबह तक पहुंच भी जायेंगे।
पापा हां बेटा रितु मैं ठीक हूं,, और तुम यूं घबराओ नहीं,, कुछ नहीं हुआ मुझे,, मैं फिट ऐन फाइन हूं,,
बस तुम दोनों को देखने का मन किया तो,,,, रितु ठीक है पापा,, आप ध्यान रखें और खाना खा लिया आपने,, हां-हां मैंने खा लिया है और तुम दोनों खाया कि नहीं।
हां पापा हमने भी खा लिया है,,
चलो फिर अब तुम अपना सफर अच्छे से तय करो,, फिर मिलते हैं,, कल सुबह।
हां पापा ओके गुड नाईट,, आप भी आराम करें।
सुबह ट्रेन से उतर कर दोनों भाई-बहन ओला बुक करके घर पापा के पास पहुंचते हैं।
केशव दोनों के बैग लेता हुआ,, आइये दीदी आइये भईया। दोनों को सोफा पर बिठाकर हाथ में पानी की ट्रे ले आता है। तभी सुभाष जी कमरे से निकल कर आ जातें हैं।
रितु दौड़ कर पापा के गले लग जाती है और साहिल पापा के झुककर पैर छूता है तो सुभाष जी उसे आशीर्वाद देते हुए गले लगा लेते हैं।
दोनों बच्चे, रितु व साहिल पापा से उन की तबियत के बारे में पूछते हैं,,
सुभाष जी कहते हैं , मेरे प्यारे बच्चों,, मैं ठीक हूं,, पर तुम दोनों को यूं तुरंत बुलवाने के पीछे,, अवश्य ही मेरी कोई मंशा है। जो मैं तुम दोनों से शेयर करना चाहता हूं, पर पहले तुम दोनों अच्छे से फ्रेश हो जाओ और कुछ खा पी लो,, फिर हम बाद में बैठ कर बात करते हैं। दोनों हां में सिर हिलाते हैं।
रितु ऊपर के कमरे में जाकर नहा-धोकर फ्रेश होके नीचे उतरती है,,
सीधे किचेन में जाती है। केशव रितु को देखकर कहता है कि दीदी आप आराम कीजिए,, नाश्ता तैयार हो ही गया है बस ,, मैं डाइनिंग टेबल पर लगा कर आपको बुलाता हूं,, रितु पूछती है कि,, क्या बनाया है नाश्ते में।
केशव कहता है दीदी आपकी पसन्द के ढोकले और साहिल भईया की पसंद की मीठी सेंवई-आलू।
रितु हंसते हुए केशव से तुझे तो सबकी सारी पसंद की जानकारी है ही।
केशव भी हंसते हुए ,, दीदी मुझे तो राज जीजू की पसंद की भी पूरी जानकारी है।
रितु केशव को टेढ़ी-आंख से घूरती है। केशव झेंपते हुए,, साॅरी दीदी,, उत्तेजना में कुछ ज्यादा ही बोल गया। और रितु किचेन से बाहर निकल जाती है।
साहिल और मिस्टर सुभाष भी थोड़ी देर में नहा धो के,
डाइनिंग टेबल पर आ जाते हैं,, तीनों बैठकर अपनी-अपनी प्लेट लगाते हैं,, और केशव भी आ जाता है और डाइनिंग के दूसरी छोर पर बैठ जाता है और अपनी प्लेट लगाकर खाने लगता है,, नाश्ते के बाद केशव सभी के लिए काॅफी बना लाता है।
साहिल केशव से पूछता है कि,, घर व पापा की देखभाल के बाद जो समय बचता है,, उस खाली समय में वो क्या करता रहता है,,केशव कुछ कहता उससे पहले ही
सुभाष जी , बोल देते हैं,, कि घर व मेरी देखभाल के अलावा केशव खाली समय में मेरे साथ भजन कीर्तन करता है।
केशव पूछता है,, पापा जी आप और दीदी दिन का मेन्यू बताएं तो मैं तैयारी शुरू कर दूं।
सुभाष जी कहते हैं,, दोनों सामने बैठें हैं,, तू ही पूछ लें।
केशव कनखियों से दोनों की ओर देखता है तो,,रितु दीदी भी ,, साहिल की ओर देखती हुई कहती हैं कि साहिल,, तुम ही बताओ।
साहिल पेट पर हाथ फिराता कहता है,, इतना हैवी तो
ब्रेकफास्ट ही करवा दिया,, अब दोपहर खाने में तो कुछ हल्का-फुल्का ही बना।
केशव कहता है कि मैंने और पापा ने तो सोचा था कि आप लोग आयेंगे तो कढ़ी-चावल बनायेंगे,, कितना समय हो गया,, पापा जी ने भी कढ़ी-चावल नहीं खाये।
रितु पापा की तरफ प्यार से देखते हुए कहती हैं तो फिर केशव बना ही ले , कढी-चावल बहुत दिन हो गए,,
साथ बैठकर तसल्ली से खाया ही नहीं।
तभी बीच में ही साहिल बोला देता है,, नहीं-नहीं,, आप लोग खाओ,, कढ़ी-चावल। केशव तू मेरे लिए तो सादी दाल ही बना दियो।
पापा जी कहते हैं कि,, कोई बात नहीं,, केशव तू आज सबके लिए ही,, दाल-चावल ही बना।
फिर सब हंसने लगते हैं।
रितु अपनी पहचान के कुछ लोगों को फोन लगाकर बातों में बिजी हो जाती है।
साहिल पापा के पास बैठा है,, पापा साहिल से पूछते हैं कि ,, कैसी चल रही है, उसकी जाॅब।
साहिल पापा को बताता है कि जाॅब तो ठीक ही चल रही है पापा। पर
सुभाष जी साहिल से,, पर, पर क्या?
साहिल उदास होते हुए,, पापा वही शालिनी का राग।
सुभाष जी,, तो मतलब वो अभी भी अपनी ही बात पर अडिग है।
साहिल जी पापा। साहिल पापा से पूछता है कि पापा फैक्ट्री का क्या हालचाल है,, सुभाष जी कहते हैं कि बेटा अब फैक्ट्री का क्या?? वो तो ताला डला हुआ एक बन्द सूना लावारिस क्षेत्र ही हो गया है अब ,, बिजनेस बाकी बचा नहीं अब,, मशीनें जंग खाकर बंद पड़ी हैं,,और पुरानी भी हो चुकी,, रिपेयर कराने पर कितने दिन चलें कोई उम्मीद बाकी नहीं,, साहिल, तो पापा आप फिर बेच ही क्यूं नहीं देते फैक्ट्री।
सुभाष जी,, हां उसका भी सोच लिया है।
केशव ने दिन का खाना तैयार कर लिया है, वो सुभाष जी के पास आकर पूछता है कि,, पापा जी खाना लगा दूं,,
सुभाष जी कहते हैं कि रितु से पूछो,, या फिर थोड़ी देर रुक कर ही लगा।
केशव हां,, बोलकर अपने कमरे में चला जाता है थोड़ी ही देर में केशव खाना लगाता है और सब मिलकर खाना खाते हैं।
साहिल और रितु पापा से पूछते हैं कि पापा कुछ खास बात जो आपने।
सुभाष जी बीच में ही बोल देते हैं कि हां बात तो खास ही है।
और फिर तुम दोनों कल दिन से वापसी की टिकट भी निकलवा कर ही आये हो। सोचा था कुछ दिन तुम दोनों के साथ बिताऊंगा,, पर अब तुम दोनों की भी तो जाॅब है,, रोक भी नहीं सकता।
तुम्हारी भी अपनी ही लाइफ है,, सबको उन्मुक्त जीने की आजादी है।
रितु की आंखें भर आती हैं,, साहिल भी उदास हो जाता है,, हां सुभाष जी की आंखों में भी नमी तैरती है पर वो अपने को रोक लेते हैं।
केशव बाहर लाॅबी में बैठा था,, पर उसकी भी आंखों से अश्रु धारा रिस ही जाती है। जिसका अपना कोई नहीं होता,, खामोशियों के दर्द को समझना, ऐसी आंखे बखूबी जानती हैं।
सुभाष जी कहते हैं,, चलो-चलो,, नीता बुआ की भी तबियत बहुत खराब चल रही है,, कल हो ना हो, कुछ पता नहीं,, तुम दोनों चाहो तो,, मिल आओ,, बुआ से।
साहिल वह रितु अपने कमरे में चले जाते हैं और सुभाष जी भी अपने कमरे में कुछ देर के लिए विश्राम करने लगते हैं।
केशव शाम की चाय बना कर सबको लाॅबी (लिविंग रुम) में बुलाता है।
सभी लोग शाम की चाय की चुस्कियां लेते हैं।
केशव फिर वही अपना आलाप आलापता है कि, ,, रात के खाने में क्या बनाऊं- क्या बनाऊं।
रितु कहती हैं कि शाही पनीर बना लें,, केशव, खिसियानी हंसी हंसते हुए कहता है कि, दीदी,, मैंने भी यही सोचा था।
केशव को देखकर रितु को भी हंसी आ जाती है,, और वो मुस्कुराते हुए धीमे से कहती हैं कि,, राज को भी,, शाही पनीर ही पसंद है।
पापा रितु को अपने कमरे में बुलाते हैं और साहिल व रितु दोनों ही पापा के साथ उनके कमरे में चले जाते हैं।
पापा रितु से,, तो बेटा क्या विचार किया तुमने अपनी जिंदगी के बारे में।
रितु आश्चर्य से,, मेरी जिंदगी।
पापा आप जानते हैं,, मैं अपनी नौकरी से खुश हूं,
सुभाष जी हां,, नौकरी से तो तुम खुश हो,, पर फैमिली,, का क्या?
रितु,, फैमिली का क्या पापा,, राज के साथ खुश हूं,, इनफैक्ट दोनों खुश हैं।
सुभाष जी,, तो मतलब यूं ही खुश रहोगे दोनों,, नाम नहीं देना,, अपने रिश्ते को तुम दोनों को।
रितु पापा नाम क्या शादी ही ना,, क्या देगा ये नाम।
जब दोनों लायल हैं साथ तो लायल हैं।और शादी कौन सा लायल्टी की मुहर लगाती है,,देख तो चुकी ही हूं जीवन में,,
कौन सा नीरज ने लायल्टी निभाई,, पहले शादी,, और फिर,,चंद रोज मज़ा और फिर मुझे जीवन भर की सज़ा।
जब उसे शादी निभिनी ही नहीं थी तो फिर करने से पहले विरोध क्यूं न कर सका अपने माता-पिता से।
और जब विरोध ना कर सका,,और शादी कर ही ली तो मुझे,, यूज करके,, क्यूं छोड़ा।
मैं कुछ सोचना समझना नहीं चाहती पापा।
पर थैंक्स नीरज का जो उसकी ही वजह से आज मैं ,, राज के साथ,, जीवन की सभी खुशियां पा रही हूं। जो नीरज ये न करता तो मुझे सारी जिंदगी पीड़ा मिलती ,, वक्त जो करता है अच्छा ही करता है।
सुभाष जी,, सहमत हूं तुम्हारी बात से पर ,, जब तुम और राज,, उम्र भर साथ निभाने को तैयार हो तो,, शादी की मुहर लगाने में हर्ज ही क्या है।
ठीक है पापा।
पर पहले ये तो बताईये,, शालिनी भाभी ने आज साहिल भाई की क्या हालत कर रखी है।
कोल्हू का बैल बन चुका है मेरा भाई।
जब जैसा चाहे नचाती हैं भाई को,,, ना छोड़ती है,, ना साथ रहती। दो महीने इसके साथ रहती तो दो महीने अपने मां-पापा के यहां,, वो भी सिर्फ अपनी बात मनवाने को।
और भाई तो ठहरा पत्नी भक्त। उसकी बात ना माने,, ये तो कभी हो नहीं सकता।
साहिल बीच में ही तो क्या करुं,, बता तू ही बता,, छोड़ दूं बीबी बच्चे को।
रितु नहीं भाई,, ऐसा नहीं कह रहीं,, पर वो तुझे मानसिक पीड़ा देती है हमेशा,, क्यों कि तू कभी उसकी तरफ कडा रुख नहीं अपना पाया। ये तो तू भी जानता है भाई कि वो तुझे कभी नहीं छोड़ेगी।तो फिर ये बार-बार का नाटक क्यूं करती है वो।
हां तो वो अपने माता-पिता को भी तो नहीं छोड़ सकती ना अकेले,, इकलौती संतान हैं वो अपने मम्मी पापा की और उसके मम्मी-पापा जैसा कहते हैं वो वैसा ही करती है।
हां भाई, सही कहा तूने,, एक वही अकेली संतान हैं अपने माता-पिता की। और यहां तो अंबार लगें हैं।
बाहर बैठा केशव ,, एक हाथ से आंसू पोछता है,और एक हाथ से अपना काम जारी रखता है।
कुछ देर के लिए सन्नाटा छा जाता है,, सब अपने आंसुओं में गुम।
कुछ ही देर मे सुभाष जी,, चुप्पी तोडते हुए ,, कहते हैं,,
चलो खाना खा लेते हैं,, फिर तुम दोनों को जो यहां बुलाया है,, उसकी असली वजह भी बताने का भी वक़्त आ गया है अब।
उदास मन से सब खाना खाते हैं।
केशव भजन गुनगुनाए जा रहा था,, जीवन की पतवार सौंप दी प्रभु द्वारे,, अब सोच के क्या करुं,, ओ मेरे मालिक प्यारे,, ओ मेरे मालिक प्यारे।
खाने के बाद , माहौल को हल्का करने के लिए,,केशव सब से अंताक्षरी खेलने का निवेदन करता है,, सब उसकी बात मान कर गीतों का आनन्द लेते हैं।
कुछ देर घर पर ही टहलने के बाद,, सुभाष जी ,, पुनः दोनों को बुलाते हैं केशव उठ कर बाहर जाने लगता है तो,,
सुभाष जी कहते हैं,, कि बैठा रह,, तुझ से कुछ भी छुपा तो नहीं ही है। और तू आज से नहीं वर्षों से ही मेरा है।
सुभाष जी कहना आरंभ करते हैं,,,
साहिल,, तुम और शालिनी एक साथ रहो ये नैतिक के स्वास्थ्य और जीवन के लिए आवश्यक है। माना नैतिक की ननिहाल सम्पन्न हैं,, पर बालक के लिए,, अपना घर अपना ही होता है। मैनै फैक्ट्री नैतिक के नाम की हुई है,, मेरा पूरा प्रयास है कि फैक्ट्री जल्द से जल्द बिक जाये तो सारी रकम नैतिक के नाम उसके खाते में एफ• डी• रहेगी
पर वो रकम वो 18 वर्ष का होने के बाद ही प्राप्त कर सकेगा।
और वैसे भी तुम और शालिनी अच्छा खासा जीवन,, दे सकते हो,, नैतिक को अपने आपसी मतभेदों का निराकरण करके।
पर मेरा भी कुछ फर्ज है अपने पोते पर जिसके लिये मैंने ये विचार किया है।
और रितु,, बैंगलूरू वाला फ्लैट जहां तुम वह राज,, किराये से रहते हो,, वो फ्लैट तुम्हारे नाम रजिस्टर हो चुका है। बस राज उसमें तुम्हारा भागीदार तभी होगा जब,, तुम दोनों विवाह बंधन में बंधोगे। और मैं ये जानता हूं कि
राज और तुम कोर्ट मैरिज के लिए अप्लाई कर चुके हो।
रितु अवाक सी पापा को देखती हुई,,,
सुभाष जी,, चौंको मत रितु,,, आखिर तुम्हारा पापा हूं मैं,,, राज मुझे बता चुका है ये बात।
रितु ओह! पापा,, राज तो काफी बार शादी के लिए बोल चुका,, पर मैं ही हर बार टालती रही,, अब तो शादी के लिए राज के मम्मी पापा को भी कोई इंकार नहीं, ना ही हमारे साथ रहने से। और पापा राज और मेरी दोनों की अर्निंग इतनी तो है ही कि हम अच्छी जिंदगी गुजार सकते हैं ।
सुभाष जी,, हां बेटा मैं जानता हूं,, वैसे भी तुम्हारी मम्मी और मैंने खुद नीरज को तुम्हारे लिए पसंद किया था ,, पर वो ऐसा निकलेगा,,, इस बात का अंदेशा तो ,,, उसके अपने माता-पिता तक को न था,,, और फिर अब उसकी बात भी क्यूं करें,,, पर मैं बहुत खुश हूं कि तुमने खुद अपने लिए
राज जैसा ,, विवेकवान व्यक्ति चुना है।
पर मेरा तुमसे अनुरोध है कि अब जल्दी ही मेरे रहते हुए ही,, तुम दोनों बंधन में बंध जाओ।
हां पापा,, मेरे आने के पीछे ये मंतव्य भी था आपको
ये खुशखबरी सुनाने का,,
सुभाष जी,, हां बेटा मैं बहुत खुश हूं।।
फिर साहिल की ओर देख कर,, तू भी शालिनी को मना के ले आ वापस अपने पास,, और एक बार ,, नैतिक और शालिनी को भी ले आ हमसे मिलवाने,,
साहिल ,, हां पापा,, अगली बार मैं दोनों को भी साथ लाऊंगा,, वैसे मैंने अभी भी बोला था शालिनी को,, पर हमारी टिकट ही,, तत्काल से हुई और बाकी उपलब्ध नहीं थीं। और अब तो शालिनी खुद ही खुशी खुशी आने को राजी हो जायेगी।
सुभाष जी थोड़ा संयमित होते हुए ,,, सबसे महत्वपूर्ण व मेरा अन्तिम निर्णय,,
मेरे इस घर पर तुम दोनों में से किसी का अधिकार नहीं होगा। तुम दोनो जब चाहो अपने परिवार सहित ,, यहां आकर खुशी-खुशी मेहमान बनकर रह सकते हों,,
पर इस घर पर अधिकार मेरे ,,, बेटे,, केशव का रहेगा।
साहिल पर पापा,, केशव।
नहीं पापा,, मुझे कुछ नहीं चाहिए ,, आपने सोचा है तो कुछ सोच कर ही सोचा होगा।
पर कल केशव का मन बदल गया और वो शादी कर बैठा तो, या उसका मन पलट गया और उसने ,, कुछ और चाल चल दी तो।
सुभाष जी,,, मैं केशव से बात कर चुका हूं और ,, केशव का कहना है ,, उसे सिर्फ मेरे साथ रहना है,, और मेरे बाद वो मेरे सत्संग को इसी घर में चलायेगा,,,आगे बढ़ायेगा।
भले ही ये घर किसी के भी नाम हो। तुम्हारी मम्मी ने इस घर में ज्ञान की जो शिखा प्रज्ज्वलित की हुई है,, उसकी बागडोर ,,, आगे भी केशव ही संभालेगा।और अगर कभी
केशव अपने दायित्व से पीछे हटेगा तो ये घर ट्रस्ट के नाम हो जायेगा,, ट्रस्ट हमेशा केशव से जवाब तलब रहेगा।।
केशव रोता हुआ,, बाबूजी,, मुझे हमेशा आपके और सत् के साथ ही रहना है,, मेरी तो दुनिया ही ये है।
साहिल और रितु भी कहते हैं ,, हां पापा सच भी है,,
केशव ही आपकी असली संतान हैं,, और इतना तो इसका भी हक बनता ही है।
हम औलाद होकर भी,, अपने जीवन की तलब से लबरेज हैं और ये केशव,, इसकी तो दुनिया ही आप है।
ये आपकी जायी तो नहीं पर कर्म संतान तो है ही।।
सुभाष जी,, मुझे पूर्ण विश्वास है ये तुमहारी मां व मेरे रोपे हुए वृक्ष को कभी सूखने नहीं देगा।
केशव है ये,, इतना तो मुझे उस केशव पर भी इत्मीनान है।
जहां एक ओर सुभाष जी,, रितु ,, साहिल के मुख पर आंसुओ से भरी उदासी मिश्रित मुस्कान उभर रही थीं
वहीं दूसरी ओर
यहां का केशव
और ऊपर वाले केशव
दोनों की अंखियां
लबालब आंसुओं से लबरेज थीं।।
क्यूंकि यही उचित निर्णय था,, सबको अपनी दिशा जो चलना था।।
इति श्री।।
रिदिमा होतवानी 🌹❤️
काल्पनिक******** स्वरचित।।।
प्रतियोगिता हेतु
मेरी प्रविष्टी 🙏
Dipanshi singh
16-Dec-2021 05:01 PM
Very nice 👌
Reply
Shrishti pandey
16-Dec-2021 03:10 PM
Nice one
Reply
Rohan Nanda
16-Dec-2021 10:14 AM
Bhaut khuub
Reply